इतना करते हुऐ क्या आपका ध्यान लग पाया
इतनी सारी विधियों को अपनाते हुए क्या आप सुख का अनुभव कर पाये। क्या उस आनंद को अपने पाया जिसकी कल्पना करते हैं। क्या उस आनंद की दौड़ आपकी पूरी हो गई हैं। क्या वह शांन्ति आपको मिल गई जिसकी कल्पना आप करते हैं। क्या वह सपने पूरे हो गए जो आप देखते हैं। और बड़े-बड़े संत, महात्मा, गुरू आपको दिखा रहे हैं। अगर नहीं तो क्यों ? इतना सब करते हुए भी हमें वह सुख, वह आनंद, क्यों नहीं मिला, जिसको आप पाना चाह रहे हैं। आख़िर क्यों यह दौड़ जीवन भर पूरी नहीं होती हैं। कोई कहता है वह मंदिर अच्छा है वहां सभी मनोकामना पूरी होती हैं तो हम दौड़ पढ़ते हैं या कोई कहता है वह संत महात्मा गुरु अच्छा है, बहुत पहुंचे हुए हैं, तो हम उनके चरणों में झुकने लगतें हैं। ऐसा क्या पाना चाहते हैं, ऐसी कौन सी कमी है, कि सब कुछ होते हुए (पैसा मान इज्जत भौतिक सुख सुविधाएं) भी ऐसा क्या बाकी है जिसको हम पाने के लिए दर-दर भटक रहे हैं।
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