Wednesday 10 August 2016

प्रार्थना-2



प्रार्थना-2

कल्प वृक्ष साधना में प्रार्थना का विशेष महत्व है। तो हम पहले प्रार्थना को समझें। प्रार्थना, दुआ, प्रेयर, आर्शीवाद जिस नाम से भी पुकारो। जिसने इसे जाना, उसने इसे अपने जीवन मे उतार लिया। अपने जीवन का साथी बना लिया। उसे जिंदगी में तमाम खुशियां मिल गई। वह सुख, समृद्धि, धन दौलत, प्यार दुलार, निरोंगता से पूर्ण हो गया। जिसने इसे जाना उसने योगियों की कंठी की तरह प्रार्थना को धारण कर लिया।

               जब से इस सृष्टि के रचना हुई है, तब से प्रार्थना का अस्तित्व अमर है, और जब तक सृष्टि रहेगी, तब तक ये सिलसिला यूं ही चलता रहेगा। जब जब प्रकृति का प्रकोप हुआ, तब तब मनुष्य ने प्रार्थना के लिए हाथ उठाऐ, और जब उनका कष्ट कम हुआ तो मनुष्य की आस्था बढ़ी, कि जरूर कोई शक्ति है जो सब कुछ नियंत्रित करती है। उसके ही आधीन यह संसार चल रहा है। हम चल रहे हैं। हमारा जीवन हमारी परिस्थितियां सब उसी शक्ति के अधीन है। यह शक्ति क्या है, साकार है या निराकार, इसको जानना है, और जिससे इस प्रार्थना की शक्ति को जान लिया, उसकी जिंदगी में बदलाव की व्यार बहने लगी। साइंस भी इस बात को मानता है, कि प्रार्थना से एक सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है ओर वह मनुष्य को बड़े-बड़े कष्टों से बाहर निकाल देती है।

           जब भी कोई इंसान प्रार्थना करता है, हाथ जोड़ता है, शीश नवाता है, तो उसका अहं का भाव खत्म हो जाता है। वह यह प्रार्थना कहीं भी मंदिर, मस्जिद, गरूद्वारे, गिरजाघर या फिर घर पर ही कर रहा हो, तो उसका चेतन मन कुछ क्षण के लिए शांत हो जाता है, और वह अवचेतन मन में पहुंचकर ध्यान लगाते हुए अपने दुखों से छुटकारा की कामना करता है, और उसका अवचेतन मन अपने अनुभव के आधार पर इसे अन्दरूनी तौर पर हालात से निबटने के लिए तैयार कर देता है। यदि उसका विश्वास व श्रद्वा अटल होती है, कोई शंका उसके मन में नहीं होती है, तो बड़ी से बड़ी मुश्किलें भी हल हो जाती है। उसकी आध्यात्मिक शक्ति जाग्रत होती है। और एक नया आत्म बल पैदा होता है। यह सकारात्मक भावना के पैदा होते ही हमारा अवचेतन मन उसकी परिस्थितियों को बदल देता है। परन्तु तभी जब विश्वास पक्का हो, इसमें समय लग सकता है, परंतु परिस्थितियां बदलेगी जरूर, समय आपकी श्रद्वा व विस्वास पर निर्भर करता है। आपकी साधना पर निर्भर करता है, कि आप अपनी बात को कितनी गहराई से अवचेतन तक पहुंचा पायें हैं।

                  कोई कहीं भी जाकर प्रार्थना करें, उसका फल उसके विश्वास के आधार पर मिलेगा, ना कि कर्म कांड या अनुष्ठान के अधार पर, या किसी विशेष स्थान के आधार पर मिलेगा। आज दुनिया में ऐसे हजारों लोग हैं जो चमत्कार करते हैं स्वयं के साथ भी और औरो के साथ भी, उन्हें लोग महाराज, ईस्वर, संत महात्मा कुछ भी नाम दें। वह यह सब प्रार्थना के बल पर ही कर पाते हैं। वह जानते हैं, उस ढंग को उस तरीके को, कि प्रार्थना कैसे की जाए, ओर उसे कैसे फलीभूत किया जाए। और जो दुसरों के लिए प्रार्थना करता है, उसका तो अहं पहले ही खत्म हो गया होता है, और फिर उसकी प्रार्थना व साधना का फल क्यों न मिलेगा।

               जब किसी के पास कोई सहारा न होता है, जब हर तरफ सें इंसान निराश हो जाता है, जिसका कोई उपचार नहीं हो पाता, जो आजीवन दुख मे बिता रहा हो, जो समय के साथ केवल हारता जाता है, उस इंसान को भी इस से रास्ता मिल जाता है। प्रार्थना का आश्रय इतना है कि श्रद्धा व विश्वास के साथ अपने आप को अवचेतन मन से जोड़कर केवल अपने विचारों को पोषित करो।
                  दुनिया में नास्तिक व आस्तिक दो प्रकार के लोग हैं। कुछ लोग श्रद्वा व विश्वास करते हैं कि शक्ति है, कुछ लोग केवल डर के कारण मानते हैं। तुम उस शक्ति को जानो जो परमात्मा या अवचेतन की शक्ति है। वह तुम्हारे मानने से या जानने से मिट नहीं जाएगी। तुम्हारे मानने से अगर नहीं होगी, तो हो नहीं जायेगी, और जो शक्ति नहीं है वह आपके मानने से पैदा नहीं हो जाएगी, जो है वह सदा रहेगी, तुम जानो मानो या न मानो। तुम डरते हो इसलिए प्रार्थना करते हो या श्रद्वा व विस्वास है इसलिए, निर्भर इस बात पर करता है प्रार्थना का फल। अगर तुमने डर से माना कि कोई है तो कभी सफल नहीं हो पाओगे। अगर सत्य, श्रद्वा व  विश्वास से जाना तो जान लोगें, तुम सब कुछ प्राप्त कर लोगे, जो चाहोगे पा लोगे।

                 इसलिऐ डर को दूर करो, डर से नहीं प्रेम से श्रद्वा से जानो कि वह शक्ति क्या है, कैसे इसका प्रयोग कर सकते हैं। हर जगह प्रेम के फूलों की वर्षा करो, और तुम जानोगे कि प्रेम करते-करते परमात्मा तुम्हारें पास खड़ा है। अपने बच्चों को, पत्नी को, परिवार को, प्रिय जनों को, मनुष्य को, पशुओं को, पक्षियों को, पौधों को, पहाड़ों को, जहां तक तुम पहुँच सकते हो, वहां तक प्रेम रूपी प्रार्थना के पुष्प खिला दो। जैसे जैसे पुष्प खिलेंगे, परमात्मा की झलक आने लगेंगी, ओर जिस दिन तुम्हारा पूर्ण रूपेण अहं खत्म हो गया तुम प्रेममय हो गये, प्रार्थना को जान गये उस दिन तुम और परमात्मा एक हो जाओगें और चमत्कार करना तुम्हारे लिए खेल बन जाए


कल्पांत कल्पवृक्ष साधना पुस्तक से (स्वामी जगतेश्वर आनंद जी)
                              मूल्य मात्र = 250/-






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