Saturday 29 August 2020

ऑनलाइन अमृतं क्रिया | अमृतं साधना | सभी रोगों के लिए अमृत के समान | शारीरिक व मानसिक रोगों का रामवाण उपचार

ऑनलाइन अमृतं क्रिया | अमृतं साधना | सभी रोगों के लिए अमृत के समान | शारीरिक व मानसिक रोगों का रामवाण उपचार




Youtube Vedio Link-:   https://youtu.be/OXlzFe0oR-U

🌹ऑनलाइन अमृतं क्रिया (दिव्य रहस्य)🌹

🌹online Amritam Kriya (Divine  Mystery)🌹

प्रत्येक रविवार एक दिवसीय सर्टिफिकेट सेमीनार, शीघ्रता से जोइनिंग करें 

कल्पान्त सेवाश्रम के द्वारा घर बैठे एक दिवसीय कल्पान्त अमृतं क्रिया (शारीरिक मानसिक और आत्मिक शुद्धिकरण) 1st, डिग्री बेसिक सर्टिफिकेट कोर्स के नये Batch, Online JioMeet App पर  होगे। "लिमिटेड रजिस्ट्रेशन" इसलिये शीघ्र रजिस्ट्रेशन करें।

अमृतं क्रिया क्या है-: मनुष्य जन्म से मृत्यु तक जो कार्य बिना रुके निरंतर करता है। वह है श्वास लेना ओर छोड़ना। ओर श्वास के संतुलन में अनेक दिव्य रहस्य छुपे हुऐ है। शरीर मन व भावों का संतुलन श्वास के संतुलन पर ही निर्भर करता है। ओर श्वास का असन्तुलन तनाव, सरदर्द, अनिद्रा, चक्कर आना, थकान, क्रोध, निराशा, चिंता, दुखः, अवसाद, भय, घबराहट, बैचेनी मानसिक अवरोध, नकारात्मक भावों जैसे मानसिक रोगों व जोड़ो का दर्द, रक्तवात, आर्थराईटिस, गठिया सरवाईकल, साईटिका, स्लिपडिस्क, कमर व घुटने के दर्द, मधुमेह, पेट रोग-कब्ज, एसिडिटी, बवासीर, लकवा, सुन्नपन्न, ब्लडप्रेशर, मोटापा स्त्री व पुरूष रोग, शारिरिक व मानसिक कमजोरी, आदि शारीरिक रोगों के रुप में प्रघट होता है। अमृतं क्रिया एक सरल लयबद्ध शक्तिशाली दिव्य तकनीक है जो प्राकृतिक श्वांस की लयों के प्रयोग से शरीर, मन और भावनाओं का शुद्विकरण कर इनमें संतुलन लाती है। ओर सभी नकारात्मक भावों, मानसिक रोगों व शारीरिक रोगों से मुक्त कर शांत, एकाग्र, ऊर्जावान, आनंदमय, जीवन के साथ शरीर व मन को गहरा विश्राम प्रदान करती है। एवं जीवनीशक्ति व प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाकर सभी कीटाणुओं विषाणुओं जीवाणुओं वायरसों से शरीर की रक्षा भी करती है।

अमृतं क्रिया जीवन को एक विशिष्ट गहराई प्रदान करती है, जीवन के  रहस्यों को उजागर करती है। साथ ही अध्यात्मिकता की  खोज को पूरा कर हमें अनंत (परमात्मा तत्व) के साथ एकाकार करती है। इसप्रकार अमृतं क्रिया मोक्षदायिनी, स्वास्थ्य, प्रसन्नता, शांति और जीवन से परे के ज्ञान का अज्ञात दिव्य रहस्य है।


जो आत्मानुभव अमृतं क्रिया कोर्स करना चहाते है। उनको इसका सेवाशुल्क कम से कम 101/रु व ज्यादा स्वेच्छा अनुसार कल्पांत सेवाश्रम को देना है। जो साधक व प्रेमीजन कोर्स करना चाहाते हैं। ओर एक स्वास्थ्य समाज व देश की रचना मे सहयोग करना चाहते है, वो सेवा शुल्क Paytm या Google pay या phone pe "9899410128" पर या "9958502499" नंबर पर कर सकते है।


सेवा शुल्क जमा कर व्हाट्सएप नंबर 9958502499 पर स्क्रीन शोर्ट या उसकी फोटो व बैच का समय दे,  उनको उस Whatsapp ग्रुप अमृतं क्रिया कोर्स मे जोड़ दिया जायेगा।


और अगर कुछ जानकारी चहिये तो मेरे व्हाटसप नंबर 9958502499 पर संपर्क करें। या कॉल करे।


जगतेश्वर आनंद धाम एवं कल्पांत हिलिंग सेंटर फिजियोथैरेपी, नेचुरोपैथी, एक्युप्रेशर, योग, प्राणायाम, ध्यान साधनाए, रेंकी, स्प्रीचुअल हीलिंग, अहार एवं नेचुरल व हर्बल थैरेपी (ट्रीटमेंन्ट एवं ट्रेनिंग सेंन्टर)

म.नं. 35, यूनाइटेड पैराडाइज,कृष्णा सागर होटल के पीछे, संत निरंकारी आश्रम के पास, मुरादनगर गंगनहर, एन एच 58, मेरठ रोड, गाजियाबाद पिन नं 201206

Contact Dr JP Verma (Swami Jagteswer Anand Ji) { BPT, Md-Acu, C.Y.Ed, G.M Reiki, NDDY & G.M Spiritual Healing} Mob-:9899410128, 9958502499

https://www.youtube.com/c/JagteswerAnandDhamCenterofDivineMysteries

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Online Kalpant Mansopchar chikitsa (A Spiritual Healing) Certificate Course on Zoom App | ऑनलाइन कल्पांत मानसोपचार चिकित्सा एक आध्यात्मिक उपचार, सर्टिफिकेट कोर्स जूम एप पर

Online Kalpant Mansopchar chikitsa (A Spiritual Healing) Certificate Course on Zoom App | ऑनलाइन कल्पांत मानसोपचार चिकित्सा एक आध्यात्मिक उपचार,  सर्टिफिकेट कोर्स जूम एप पर 




(कल्पांत मानसोपचार चिकित्सा एक आध्यात्मिक उपचार, मन के सभी रोगों का उपचार साधनाओं व विचारों के द्वारा, 21 दिवसीय ऑनलाइन Zoom App पर  सर्टिफिकेट कोर्स) का नया Batch, शीघ्र  शुरू हो रहा है। "लिमिटेड रजिस्ट्रेशन" इसलिये शीघ्र रजिस्ट्रेशन करें।

1. क्या आपका (Depression) तनाव बढ़ता जा रहा हैं।
2. क्या आपको छोटी सी बात पर भंयकर क्रोध आता है।
3. क्या आपका घर मेडिकल स्टोर बनता जा रहा है। और रोग लगातार बढ़ते जा रहे हैं।
4. क्या आपके शरीर की प्रतिरोधक क्षमता व जीवनी शक्ति (Immunity Power and Vital Energy) कमजोर होती जा रही है।
5. क्या कम उम्र ही शरीर में बुढ़ापे के लक्षण प्रगट हो रहे हैं।
6. क्या आपको पूरे दिन घबराहट, बेचैनी, खिन्नता, निराशा, उदासी, शक्तिहीनता, आलस्य बना रहता है।
7. क्या आपको रात को सही से नींद नहीं आती है।
8. क्या आपके मन में लगातार नकारात्मक विचार आते रहते हैं।
9. क्या आप हर वक्त चिंतित रहते हैं ओर आपका मन हर पल विचलित रहता है।
10. क्या आपके रोग आसाध्य होते जा रहे है, दवाईयाँ लेकर भी ठीक नही हो रहे है।

यदि इन सवालों का जवाब हाँ मे हैं ओर आप ऐसे अनेक मानसिक रोगों से छुटकारा पाना चाहते हैं, तो शीघ्रता से ज्वाइन करें, हमारा मानसिक चिकित्सा एक आध्यात्मिक उपचार कोर्स, और पायें अपनें मानसिक, शरीरिक, आत्मिक, रोगों को दूर करने का रास्ता व जीवन को आनंदित व शान्तिमय बनायें

मानसोपचार अर्थार्त मानस या मनुष्य का मन से उपचार या मन के विचारो से उपचार की विधि का नाम है, जिसका उदेश्य मन के भाव चिंता-परेशानी, क्रोध, नकारात्मकता, द्वंद, घ्रणा, इर्ष्या, श्रोभ, दुःख, या कुंठा आदि को अपने विचारो के द्वारा सकारात्मकता में बदल कर जीवन को सोम्य व शांत बनाना है। जिससे हम शारीरिक, मानसिक, आत्मिक, रूप से पूर्ण स्वास्थ्य प्राप्त कर लें। और साथ ही शरीर के सभी तंत्रों पर ध्यान अर्थात साधना के द्वारा कैसे रोग ठीक हो, यह जानेंगे, क्योंकि हमारे शरीर में रोग किसी तंत्र के ठीक से कार्य न करने से या वहां ऊर्जा की कमी के कारण आता है, तो हम जानेंगे कि कैसे हम हड्डियों के रोग अर्थात कंकाल तंत्र, पाचन संबंधी रोग अर्थात पाचन तंत्र, श्वास संबंधी रोग अर्थात श्वसन तन्त्र, हृदय संबंधी रोग अर्थात रक्त परिसंचरण तन्त्र, व हार्मोनल तन्त्र अर्थात हार्मोनल रोग, उत्सर्जन तन्त्र, को ध्यान के द्वारा साधना के द्वारा कैसे ठीक करें, इस क्रिया को हम सीख पाएंगे।

आज मनुष्य का जीवन भागदौड़ भरा जीवन है, इस दौड़ में सब कुछ पाने की महत्वकांक्षा के कारण हम लगातार तनावग्रस्त होते रहते हैं, ओर मानसिक रोग पैदा होने शुरु हो जाते हैं, मानसिक रोग शारीरिक रोगों से भी ज्यादा खतरनाक होते हैं, आज विज्ञान भी यह मानता है कि 90% रोग मानसिकता के बिगड़ने के कारण होते है, साथ ही आज के समय में 99% व्यक्ति मानसिक रोग के शिकार हैं, सभी प्रकार के हृदय रोग, मधुमेह रोग, तंत्रिका तंत्र के रोग मानसिक रोगों का ही परिणाम है, साधना के द्वारा व विचारों के द्वारा इन्हें कैसे ठीक करें, इस कोर्स में हम सीख पाएंगे,

कोर्स के मुख्य लाभों में आप स्वयं को, परिवार को व किसी भी मित्र को स्वास्थ्य प्रदान कर सकते है, एवं साधनाओं के द्वारा परम आनंद की अनुभूतियां कर शांति के अनुभव के साथ अपने मानसिक तनाव, अनिंद्रा, चिन्ता, दुख, मानसिक, अवरोध, बैचेनी, घबराहट, घृणा, कंठा, द्वेष, भय, काम, क्रोध, मोह, लोभ,अहंकार जेसे रोगों से भी मुक्ति पा सकते है। किसी भी तरह की मानसिक व शरीरिक बिमारी, रोग, दर्द को दूर कर संपूर्ण स्वास्थ्य पा सकते है।

हम आपको 21 घंटे का कल्पांत मानसोपचार चिकित्सा एक आध्यात्मिक उपचार, मन के सभी रोगों का उपचार साधनाओं व विचारों के द्वारा कोर्स करा रहे हैं। आपको  रोजाना  मात्र एक घंटा 21 दिन तक देना है। यह पूरा कोर्स Online Zoom App पर Live होगा, साथ ही आप 21 दिन तक रोजाना मेरे साथ 21 साधनाओं का एहसास करेंगे ओर अपना उपचार भी करेंगे। Live सेशन के बाद उसके ऑडियो वीडियो आपको वाट्स ग्रुप में  भेजे जाते है ताकि आप उसे सुन के आसानी से घर में उसकी प्रैक्टिस कर सके, कोर्स के अंत में पीडीऍफ़ बुक भी वाट्स ग्रुप में दी जाएगी।

रेफ्रेशर कोर्सेस – एक बार कोर्स जोईन करने के बाद अगर आप दूसरी बार कोर्स करने के लिये नये बैच में जोईन करना चाहे तो सेवाशुल्क कम से कम 251/ रु व ज्यादा स्वेच्छा अनुसार कल्पांत सेवाश्रम को देकर जितनी बार चाहे जोईनिग कर सकते हैं।

जो आत्मानुभव कोर्स करना चहाते है। उनको इसका सेवाशुल्क कम से कम 2101/रु व ज्यादा स्वेच्छा अनुसार कल्पांत सेवाश्रम को देना है। जो प्रेमीजन रेकी में रुचि रखते हैं। ओर स्वयं के डॉक्टर बनना चाहते है ओर एक स्वास्थ्य समाज व देश की रचना मे सहयोग करना चाहते है, वो सेवा शुल्क Paytm या Google pay या phone pe "9899410128" पर या "9958502499" नंबर पर कर सकते है।

या
kalpant sewashram trust के खाते में Bank= oriental bank of commerce Account number = 05262011015007 Ifs code= ORBC0100526, पर भी जमा कर सकते है।

सेवा शुल्क जमा कर व्हाट्सएप नंबर 9958502499 पर स्क्रीन शोर्ट या उसकी फोटो दे, उनको Whatsapp कोर्स के ग्रुप मे जोड़ दिया जायेगा।

और अगर कुछ जानकारी चहिये तो मेरे व्हाटसप नंबर 9958502499 पर संपर्क करें। या कॉल करे।

जगतेश्वर आनंद धाम एवं कल्पांत हिलिंग सेंटर फिजियोथैरेपी, नेचुरोपैथी, एक्युप्रेशर, योग, प्राणायाम, ध्यान साधनाए, रेंकी, स्प्रीचुअल हीलिंग, अहार एवं नेचुरल व हर्बल थैरेपी (ट्रीटमेंन्ट एवं ट्रेनिंग सेंन्टर)
म.नं. 35, यूनाइटेड पैराडाइज,कृष्णा सागर होटल के पीछे, संत निरंकारी आश्रम के पास, मुरादनगर गंगनहर, एन एच 58, मेरठ रोड, गाजियाबाद पिन नं 201206

Contact Dr JP Verma (Swami Jagteswer Anand Ji) { BPT, Md-Acu, C.Y.Ed, G.M Reiki, NDDY & G.M Spiritual Healing} Mob-:9899410128, 9958502499

Learn Online Naturopathy Certificate Course on Zoom App | ऑनलाइन प्राकर्तिक चिकित्सा सर्टिफिकेट कोर्स जूम एप पर

Learn Online Naturopathy Certificate Course on Zoom App | ऑनलाइन प्राकर्तिक चिकित्सा सर्टिफिकेट कोर्स जूम एप पर 



अगर आप बिना दवाईयों के स्वास्थ्य रहना चहाते है, प्राकृतिक चिकित्सा में रुचि रखते हैं। ओर स्वयं के डॉक्टर बनना चाहते है ओर एक स्वास्थ्य समाज की रचना मे सहयोग करना चाहते है लेकिन आपके नजदीक कोई सेण्टर नहीं है ? व्यस्त जीवन शैली के कारण सीखने के लिए पर्याप्त समय नहीं निकाल पाते है?, कही जाकर सीख पाना संभव नहीं है। तो कृपया इस पोस्ट को ध्यान से एकबार जरूर पढ़े

भारत मे पहली प्राकृतिक चिकित्सा के प्रसार व प्रचार हेतु (11 दिवसीय प्राकर्तिक चिकित्सा का ऑनलाइन Zoom App पर सर्टिफिकेट कोर्स) कल्पांत हिलिंग सेंटर एवं जगतेश्वर आनंद धाम मुरादनगर के द्वारा शीघ्र शुरू होने जा रहा है। पुराने मित्र जिन्होंने यह कोर्स किया है वो अपने मित्रो को व प्रेमीजनों को इसबार कोर्स में जोईन करायें जिससे अधिक से अधिक प्रेमीजन इसका लाभ उठा सके।

प्राकर्तिक चिकित्सा क्या है-: प्राकृतिक चिकित्सा एक ऐसी चिकित्सा है, जिसमें जहरीले रसायनों का व औषधियों का प्रयोग नहीं किया जाता है। यह चिकित्सा छः तत्वों पर आधारित है। महतत्व, आकाशतत्व, वायुतत्व, अग्नितत्व, जलतत्व, पृथ्वीतत्व, यह छः तत्व ही सृष्टि के मुख्य तत्व है। इन तत्वों के द्वारा हम साध्य, असाध्य सभी रोगों (आधिदैविक, आधिभौतिक, तथा आध्यात्मिक) का उपचार करते हैं। इस षट् तत्व की चिकित्सा को प्राकृतिक चिकित्सा कहा जाता है। इसे प्रकृति चिकित्सा, नैसर्गिक चिकित्सा, प्राकृतिक उपचार, जल चिकित्सा, स्वाभाविक चिकित्सा, कुदरती उपचार, नेचर क्योर, नेचुरोपैथी, नेचर थेरेपी, हर्बल थेरेपी, हिलिंग थैरेपी आदि नामो से भी जाना जाता है।

कोर्स के मुख्य लाभों में आप स्वयं को, परिवार को व किसी भी मित्र को स्वास्थ्य प्रदान कर सकते है व किसी को भी स्वस्थ केसे रहा जाये सीखा सकते है, किसी भी तरह की नयी व पुरानी बिमारी, रोग, दर्द आदि को दूर कर संपूर्ण स्वास्थ्य पा सकते है।

रेफ्रेशर कोर्सेस – एक बार कोर्स जोईन करने के बाद अगर आप दूसरी बार कोर्स करने के लिये नये बैच में जोईन करना चाहे तो सेवाशुल्क कम से कम 251/ रु व ज्यादा स्वेच्छा अनुसार कल्पांत सेवाश्रम को देकर जितनी बार चाहे जोईनिग कर सकते हैं।

हम आपको 11 दिन का प्राकर्तिक चिकित्सा का कोर्स करा रहे हैं। आपको  मात्र एक घंटा 11 दिन तक देना है। यह पूरा कोर्स Online Zoom App पर Live होगा, सेशन के बाद उसके ऑडियो वीडियो आपको वाट्सएप ग्रुप में  भेजे जायेंगे  ताकि आप उसे सुन के आसानी से घर में भी प्राकर्तिक चिकित्सा की प्रैक्टिस कर सके. कोर्स के अंत में पीडीऍफ़ बुक भी वाट्स ग्रुप में दी जाएगी।

जो आत्मानुभव कोर्स करना चहाते है। उनको इसका सेवाशुल्क कम से कम 1100/रु व ज्यादा स्वेच्छा अनुसार कल्पांत सेवाश्रम को देना है। जो प्रेमीजन रेकी में रुचि रखते हैं। ओर स्वयं के डॉक्टर बनना चाहते है ओर एक स्वास्थ्य समाज व देश की रचना मे सहयोग करना चाहते है, वो सेवा शुल्क Paytm या Google pay या phone pe "9899410128" पर या "9958502499" नंबर पर कर सकते है।

या
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जगतेश्वर आनंद धाम एवं कल्पांत हिलिंग सेंटर फिजियोथैरेपी, नेचुरोपैथी, एक्युप्रेशर, योग, प्राणायाम, ध्यान साधनाए, रेंकी, स्प्रीचुअल हीलिंग, अहार एवं नेचुरल व हर्बल थैरेपी (ट्रीटमेंन्ट एवं ट्रेनिंग सेंन्टर)
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Friday 28 August 2020

Online Reiki Level I, II and Master/ Teacher Program Learn Reiki Levels 1, 2 and Master Level to become a Certified Traditional Indian Reiki Practitioner/Instructor | कल्पांत रेकी साधना 1st, & 2nd डिग्री सर्टिफिकेट कोर्स, Online Zoom App


Youtube Vedio Link-:  रेकी केसे सीखे

भारत में पहली बार घर बैठे 7000रु वाला कोर्स मात्र 1100  रु में केवल 11 घंटे मे करके रेकी हीलर बने। समय का सदउपयोग करें, आध्यात्मिक चिकित्सा सीखकर स्वयं व औरों को स्वास्थ्य प्राप्ति में सहयोगी बनें

कल्पांत रेकी साधना 1st, & 2nd डिग्री सर्टिफिकेट कोर्स का नया Batch, Online Zoom App पर शीघ्र  शुरू होने जा  रहा है। कोर्स समाप्त होने पर सर्टिफिकेट भी दिया जायेगा। "लिमिटेड रजिस्ट्रेशन" इसलिये शीघ्र रजिस्ट्रेशन करें।*

क्या आप रेकी सीखना चाहते है लेकिन आपके नजदीक कोई सेण्टर नहीं है ?, व्यस्त जीवन शैली के कारण सीखने के लिए पर्याप्त समय नहीं निकाल पाते है ?, कही जाकर सीख पाना संभव नहीं है। तो कृपया इस पोस्ट को पूरा ध्यान से पढ़े क्योंकि हम यहाँ बात करेंगे ' कल्पांत रेकी साधना 1st, & 2nd डिग्री सर्टिफिकेट कोर्स Online Zoom App पर' के बारे जिसकी मदद से आप अपने घर बैठे बड़ी आसानी से रेकी की सभी साधनायें सीख कर रेकी के सभी लाभ अपने जीवन में उठा सकते है। कल्पांत रेकी साधना केवल हमारे द्वारा ही भारत में कराई जा रही है, जो जापानीज रेकी से ज्यादा पावरफुल साधना है। 

रेकी परिचय... रेकी एक जापानीज शब्द है जो दो अक्षरों से बना है। रे - का मतलब होता है वैश्विक प्राण ऊर्जा, और की - का मतलब होता है हमरे शरीर की प्राण ऊर्जा. अर्थार्त - स्वयं की प्राण ऊर्जा को इस ब्रह्माण्ड की प्राण ऊर्जा के साथ जोड़ना. रेकी की सभी साधनायें इसी एक सिद्धांत पर आधारित है।
प्रत्येक मनुष्य इस शक्ति के साथ उत्पन्न होता हैं। और पूरे जीवन इसका जाने अनजाने प्रयोग करता रहता हैं। हमारे ऋषि मुनियों ने, संत महात्माओं ने जीवन के आरंभ में ही इस विधि को जान लिया था। और वह इसका प्रयोग करते थें। आज भी बहुत से संत महात्मा, साधु, भक्त व तांत्रिक बाबा लोग इसी शक्ति से बढ़े बढ़े चमत्कार करते है। इसको जानना व सीखना बहुत आसान है ओर कोई भी साधक इसको सहज में सीखकर स्वयं व दुसरो का जीवन बदल सकता हैं।

कोर्स के मुख्य लाभों में आप स्वयं को, परिवार को व किसी भी मित्र को स्वास्थ्य प्रदान कर सकते है, एवं रेकी के द्वारा परम आनंद की अनुभूतियां कर शांति के अनुभव के साथ अपने मानसिक तनाव, अनिंद्रा, चिन्ता, दुख, मानसिक, अवरोध, बैचेनी, घबराहट, घृणा, कंठा, द्वेष, भय, काम, क्रोध, मोह, लोभ,अहंकार जेसे रोगों से भी मुक्ति पा सकते है। किसी भी तरह की बिमारी, रोग, दर्द को दूर कर संपूर्ण स्वास्थ्य पा सकते है।

इस रेकी कोर्स से चक्र जाग्रत होते है ओर मन और आत्मा के उत्थान के लिए कुंडलिनी जाग्रति की ओर व चक्रों को जाग्रति की ओर साधक अग्रसर होता है। व आध्यात्मिक रहस्योद्घाटन होने लगते है।
इस कोर्स से आप जीवन में जो चाहे पा सकते हैं। जो चाहे बन सकते हैं। अपने सपने पूरे कर सकते है। सुख व समृद्धि पा सकते है। अपने लक्ष्य को पूरा कर सकते है। आपसी संबंधों को सुधार सकते है। किसी भी समस्या का समाधान पा सकते है। भूतादिक नकारात्मक आटैको व नकारात्मक विचारों से बच सकते है। अपने वयक्तित्व में निखार ला सकते हैं। इससे अपने ऊपर विश्वास को व अपनी मानसिक पावर को बढ़ा पायेंगे। कुण्डली में कोई ग्रहदोष हो जैसे मंगल दोष बाधा, साढ़ेसाती दोष बाधा, पितृ दोष बाधा, कालसर्प दोष बाधा, राहु दशा बाधा, शनि दशा बाधा, आदि के प्रभाव से मुक्त हो सकते है।

हम आपको 11 घंटे का कल्पांत रेकी साधना का कोर्स करा रहे हैं। आपको  रोजाना  मात्र एक घंटा 11 दिन तक देना है। यह पूरा कोर्स Online Zoom App पर Live होगा, और Zoom App के माध्यम सें ही रेकी शक्तिपात करके चक्रों को जाग्रत किया जायेगा। ओर Zoom App पर ही आपको मंत्र दिक्षा व शक्तिपात किया जायेगा। जिसमे आपके सातों चक्रों एवं नाड़ियों को जाग्रत किया जाता है, और रेकी ऊर्जा को डिस्टेंस हीलिंग द्वारा आपके शरीर में प्रवाहित किया जाता है। साथ ही आप 11 दिन तक रोजाना मेरे साथ ऊर्जा का एहसास करेंगे ओर अपना उपचार भी करेंगे। Live सेशन के बाद उसके ऑडियो वीडियो आपको वाट्स ग्रुप में  भेजे जाते है ताकि आप उसे सुन के आसानी से घर में रेकी की प्रैक्टिस कर सके. कोर्स के अंत में पीडीऍफ़ बुक भी वाट्स ग्रुप में दी जाएगी।

रेकी में कोई गुरु नहीं है, रेकी एक अनादि अनंत ऊर्जा है जो हम सब के भीतर है। और गुरु कोई व्यक्ति नहीं, बल्कि एक अनंत ऊर्जा का रूप है जो हम सब के भीतर है, रेकी के द्वारा हम उस परम तत्त्व अनंत ऊर्जा के रूप को जागृत करने की विधियाँ बताते है जिनका अभ्यास करके आप परम अनंत ऊर्जा (परमात्मा) से जुड़ जायेगे।

रेफ्रेशर कोर्सेस – एक बार कोर्स जोईन करने के बाद अगर आप दूसरी बार कोर्स करने के लिये नये बैच में जोईन करना चाहे तो सेवाशुल्क कम से कम 251/ रु व ज्यादा स्वेच्छा अनुसार कल्पांत सेवाश्रम को देकर जितनी बार चाहे जोईनिग कर सकते हैं।

कल्पांत रेकी साधना 1st, & 2nd डिग्री सर्टिफिकेट कोर्स में आपको सिखाया जायेगा

कल्पांत रेकी हीलिंग साधना क्या है, हमारा उद्देश्य क्या है, हमारी स्वास्थ्य क्रांति क्या है, रेकी का परिचय, रेकी क्या है, रेकी हीलिंग की आवश्यकता क्या है, सब कुछ ऊर्जा है, रेकी का इतिहास,  रेंकी जागरण का एहसास, मनुष्य की आवश्यकताऐ, रेंकी के 15 सिद्धांत,  रेंकी कौन सीख सकता हैं।,  रेंकी के चरण,  रेंकी की विशेषताएं,  रेंकी ऊर्जा उपचार में रोगी की भूमिका क्या है?,  रेंकी ऊर्जा कैसे कार्य करती है?, ओरा (आभामंडल), ओरा व रोग, औरा को महसूस करना देखना नापना,  ओरा के ग्यारह रंगो की व्याख्या,  ओरा की सफाई,  ओरा कवच,  पंचकोश,  शरीर से ऊर्जा का निकलना,  क्या हमारी ऊर्जा को कोई चुरा सकता है ?,  दुरस्त हीलिंग क्या है,  दुरस्त हीलिंग कैसे काम करती है,  सुदर्शन चक्र की निर्माण विधि,  भारतीय रेकी सिम्बल व सिंबलो का प्रयोग,  नकारात्मक ऊर्जाओ की पहचान, रेकी द्वारा स्पर्श चिकित्सा,  रेकी द्वारा दूसरों को स्पर्श चिकित्सा देने की विधि,  नकारत्मक विचार, व्यसन, क्रोध, चिंता अदि को को दूर करने की रेकी विधि, ओर भी बहुत कुछ
 
जो आत्मानुभव कोर्स करना चहाते है। उनको इसका सेवाशुल्क कम से कम 1100/रु व ज्यादा स्वेच्छा अनुसार कल्पांत सेवाश्रम को देना है। जो प्रेमीजन रेकी में रुचि रखते हैं। ओर स्वयं के डॉक्टर बनना चाहते है ओर एक स्वास्थ्य समाज व देश की रचना मे सहयोग करना चाहते है, वो सेवा शुल्क Paytm या Google pay या phone pe "9899410128" पर या "9958502499" नंबर पर कर सकते है।

या
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सेवा शुल्क जमा कर व्हाट्सएप नंबर 9958502499 पर स्क्रीन शोर्ट या उसकी फोटो दे, उनको Whatsapp ग्रुप रेकी कोर्स मे जोड़ दिया जायेगा।

और अगर कुछ जानकारी चहिये तो मेरे व्हाटसप नंबर 9958502499 पर संपर्क करें। या कॉल करे।

जगतेश्वर आनंद धाम एवं कल्पांत हिलिंग सेंटर फिजियोथैरेपी, नेचुरोपैथी, एक्युप्रेशर, योग, प्राणायाम, ध्यान साधनाए, रेंकी, स्प्रीचुअल हीलिंग, अहार एवं नेचुरल व हर्बल थैरेपी (ट्रीटमेंन्ट एवं ट्रेनिंग सेंन्टर)
म.नं. 35, यूनाइटेड पैराडाइज,कृष्णा सागर होटल के पीछे, संत निरंकारी आश्रम के पास, मुरादनगर गंगनहर, एन एच 58, मेरठ रोड, गाजियाबाद पिन नं 201206

Contact Dr JP Verma (Swami Jagteswer Anand Ji) { BPT, Md-Acu, C.Y.Ed, G.M Reiki, NDDY & G.M Spiritual Healing} Mob-:9899410128, 9958502499

Saturday 1 October 2016

मृत शरीर

🌹मृत शरीर जलाना अर्थपूर्ण 🌹

हिंदू जलाते हैं शरीर को। क्योंकि जब तक शरीर जल न जाए, तब तक आत्मा शरीर के आसपास भटकती है। पुराने घर का मोह थोड़ा सा पकड़े रखता है।तुम्हारा पुराना घर भी गिर जाए तो भी नया घर बनाने तुम एकदम से न जाओगे। तुम पहले कोशिश करोगे, कि थोड़ा इंतजाम हो जाए और इसी में थोड़ी सी सुविधा हो जाए, थोड़ा खंभा सम्हाल दें, थोड़ा सहारा लगा दें। किसी तरह इसी में गुजारा कर लें। नया बनाना तो बहुत मुश्किल होगा, बड़ा कठिन होगा।

जैसे ही शरीर मरता है, वैसे ही आत्मा शरीर के आसपास वर्तुलाकार घूमने लगती है। कोशिश करती है फिर से प्रवेश की। इसी शरीर में प्रविष्ट हो जाए। पुराने से परिचय होता है, पहचान होती है। नए में कहां जाएंगे, कहां खोजेंगे? मिलेगा, नहीं मिलेगा?इसलिए हिंदुओं ने इस बात को बहुत सदियों पूर्व समझ लिया कि शरीर को बचाना ठीक नहीं है। इसलिए हिंदुओं ने कब्रों में शरीर को नहीं रखा। क्योंकि उससे आत्मा की यात्रा में निरर्थक बाधा पड़ती है। जब तक शरीर बचा रहेगा थोड़ा बहुत, तब तक आत्मा वहां चक्कर लगाती रहेगी।

इसलिए हिंदुओं के मरघट में तुम उतनी प्रेतात्माएं न पाओगे, जितनी मुसलमानों या ईसाइयों के मरघट में पाओगे। अगर तुम्हें प्रेतात्माओं में थोड़ा रस हो, और तुमने कभी थोड़े प्रयोग किए हों–किसी ने भी प्रेतात्माओं के संबंध में, तो तुम चकित होओगे; हिंदू मरघट करीब-करीब सूना है। कभी मुश्किल से कोई प्रेतात्मा हिंदू मरघट पर मिल सकती है। लेकिन मुसलमानों के मरघट पर तुम्हें प्रेतात्माएं ही प्रेतात्माएं मिल जाएंगी। शायद यही एक कारण इस बात का भी है, कि ईसाई और मुसलमान दोनों ने यह स्वीकार कर लिया, कि एक ही जन्म है। क्योंकि मरने के बाद वर्षों तक आत्मा भटकती रहती है कब्र के आस-पास।

हिंदुओं को तत्क्षण यह स्मरण हो गया कि जन्मों की अनंत शृंखला है। क्योंकि यहां शरीर उन्होंने जलाया कि आत्मा तत्क्षण नए जन्म में प्रवेश कर जाती है। अगर मुसलमान फिर से पैदा होता है, तो उसके एक जन्म में और दूसरे जन्म के बीच में काफी लंबा फासला होता है। वर्षों का फासला हो सकता है। इसलिए मुसलमान को पिछले जन्म की याद आना मुश्किल है।

इसलिए यह चमत्कारी बात है, और वैज्ञानिक इस पर बड़े हैरान होते हैं कि जितने लोगों को पिछले जन्म की याद आती है, वे अधिकतर हिंदू घरों में ही क्यों पैदा होते हैं? मुसलमान घर में पैदा क्यों नहीं होते? कभी एकाध घटना घटी है। ईसाई घर में कभी एकाध घटना घटी है। लेकिन हिंदुस्तान में आए दिन घटना घटती है। क्या कारण है?कारण है। क्योंकि जितना लंबा समय हो जाएगा, उतनी स्मृति धुंधली हो जाएगी पिछले जन्म की। जैसे आज से दस साल पहले अगर मैं तुमसे पूछूं, कि आज से दस साल पहले उन्नीस सौ पैंसठ, एक जनवरी को क्या हुआ? एक जनवरी उन्नीस सौ पैंसठ में हुई, यह पक्का है; तुम भी थे, यह भी पक्का है। लेकिन क्या तुम याद कर पाओगे एक जनवरी उन्नीस सौ पैंसठ?

तुम कहोगे कि एक जनवरी हुई यह भी ठीक है। मैं भी था यह भी ठीक है। कुछ न कुछ हुआ ही होगा यह भी ठीक है। दिन ऐसे ही खाली थोड़े ही चला जाएगा! ज्ञानी का दिन भला खाली चला जाए, अज्ञानी का कहीं खाली जा सकता है? कुछ न कुछ जरूर हुआ होगा। कोई झगड़ा-झांसा, उपद्रव, प्रेम, क्रोध, घृणा–मगर क्या याद आता है?

कुछ भी याद नहीं आता। खाली मालूम पड़ता है एक जनवरी उन्नीस सौ पैंसठ, जैसे हुआ ही नहीं।

जितना समय व्यतीत होता चला जाता है, उतनी नई स्मृतियों की पर्ते बनती चली जाती हैं, पुरानी स्मृति दब जाती है। तो अगर कोई व्यक्ति मरे आज, और आज ही नया जन्म ले ले तो शायद संभावना है, कि उसे पिछले जन्म की थोड़ी याद बनी रहे। क्योंकि फासला बिलकुल नहीं है। स्मृति कोई बीच में खड़ी ही नहीं है। कोई दीवाल ही नहीं है।

लेकिन आज मरे, और पचास साल बाद पैदा हो तो स्मृति मुश्किल हो जाएगी। पचास साल! क्योंकि भूत-प्रेत भी अनुभव से गुजरते हैं। उनकी भी स्मृतियां हैं; वे बीच में खड़ी हो जाएंगी। एक दीवाल बन जाएगी मजबूत।

इसलिए ईसाई, मुसलमान और यहूदी; ये तीनों कौमें जो मुर्दो को जलाती नहीं, गड़ाती हैं; तीनों मानती हैं कि कोई पुनर्जन्म नहीं है, बस एक ही जन्म है। उनके एक जन्म के सिद्धांत के पीछे गहरे से गहरा कारण यही है, कि कोई भी याद नहीं कर पाता पिछले जन्मों को।

हिंदुओं ने हजारों सालों में लाखों लोगों को जन्म दिया है, जिनकी स्मृति बिलकुल प्रगाढ़ है। और उसका कुल कारण इतना है कि जैसे ही हम मुर्दे को जला देते हैं–घर नष्ट हो गया बिलकुल। खंडहर भी नहीं बचा कि तुम उसके आसपास चक्कर काटो। वह राख ही हो गया। अब वहां रहने का कोई कारण ही नहीं। भागो और कोई नया छप्पर खोजो।

आत्मा भागती है; नए गर्भ में प्रवेश करने के लिए उत्सुक होती है। वह भी तृष्णा से शुरुआत होती है। इसलिए तो हम कहते हैं, जो तृष्णा के पार हो गया, उसका पुनर्जन्म नहीं होता। क्योंकि पुनर्जन्म का कोई कारण न रहा। सब घर कामना से बनाए जाते हैं। शरीर कामना से बनाया जाता है। कामना ही आधार है शरीर का। जब कोई कामना ही न रही, पाने को कुछ न रहा, जानने को कुछ न रहा, यात्रा पूरी हो गई, तो नए गर्भ में यात्रा नहीं होती।

 ओशो🌹🌹

Sunday 28 August 2016

कल्पांत रेकी साधना कोर्स


भारत मे पहली बार “कल्पांत रेकी साधना कोर्स Whatsapp ओर Hike पर”

रेकी परिचय -:

 रेकी (Reiki) एक जापानी शब्द हैं।, जिसका अर्थ हैं। सर्वव्यापी जीवनी शक्ति (Universal Life Energy), इसको ब्रह्मांडीय ऊर्जा (Cosmic Energy) भी कहा जाता हैं। प्रत्येक मनुष्य इस जीवनी शक्ति के साथ उत्पन्न होता हैं। और पूरे जीवन इसका जाने अनजाने प्रयोग करता रहता हैं। लगभग 1800 ईसा के अंतिम वर्षों में डाँ मिकाओ उशुई ने रेकी को खोजा ओर उन्हे इसका संस्थापक माना गया हैं। परंतु हमारे ऋषि मुनियों ने, संत महात्माओं ने जीवन के आरंभ में ही इस विधि को जान लिया था। और वह प्रार्थना के द्वारा इसका प्रयोग करते थें। हमारे प्राचीन ऋषियों की संपदा को ही डॉक्टर मिकाओ उशुई ने खोजा और जापानीज सिंबल व जापानी मंत्र दिए, परन्तु कल्पांत रेंकी साधना में हम भारतीय सिंबल व मंत्र के द्वारा रेंकी हीलिंग सीखेंगे और यह रेकी या ऊर्जा जापानीज रेकी से हजारों गुना तेजी से काम करेंगी और इसको जानना व सीखना भी आसान होगा।

आप ने सुना होगा कि हमारे पूर्वज, गुरु, संत, महात्मा, शक्तिपात किया करते थें, और वह इससे चक्रों को जागृत किया करते थें। चक्र जागृत करने के दो ही रास्ते हैं। एक ध्यान व दूसरा शक्तिपात, तो शक्तिपात की इस क्रिया को ही रेकी कहा जाता हैं। परंतु डाँ मिकाओ उशुई ने इसे ध्यान के द्वारा प्राप्त किया था। और एक खास बात की रेकी कुंडलिनी शक्ति का प्रयोग ही हैं। रेकी मैं ऊर्जा ब्रह्मांड से लेकर आगे सामने वाले पर प्रवाहित की जाती हैं, और उसका चैनल या यूं कहें कि माध्यम हम होते हैं बस यही रेकी हैं।।

हम आपको 21 दिन का कल्पांत रेकी साधना 1 डिग्री और 2 डिग्री का कोर्स करा रहे हैं।

 यह पूरा कोर्स Whatsapp ओर Hike पर होगा, हम आपको नोट्स भेजेंगे और आपको रेकी शक्तिपात के लिये एक फोटो Whatsapp या Hike पर भेजना होगा। साथ ही एक बार 30 मिनट का समय आपको Online call पर देना होगा जिसमें आपको मंत्र दिक्षा व शक्तिपात किया जायेगा। ओर फिर आपको एक घंटे नियमित अभ्यास शुरू करना होगा

 इसके साथ हम आपको फर्स्ट डिग्री और सेकंड डिग्री की बुक पीडीएफ में देगे ओर रेकी फर्स्ट व सेकंड डिग्री का सर्टिफिकेट भी आपके पते पर भेजेंगे। जो आत्मजन कोर्स करना चहाते है उन्है 2100 रू जमा करने होगें, रू जमा करते ही आपको एक फार्म पीडीएफ मे दिया जायेंगा, आपको उसे डाउनलोड कर भरकर तीन फोटो के साथ कोरियर करना होगा। ओर साथ ही आपका कोर्स शुरू कर दिया जायेगा।

अधिक जानकारी के लिए "9958502499" पर संपर्क करें। आप ने सुना होगा कि हमारे पूर्वज, गुरु, संत, महात्मा, शक्तिपात किया करते थें, और वह इससे चक्रों को जागृत किया करते थें। चक्र जागृत करने के दो ही रास्ते हैं। एक ध्यान व दूसरा शक्तिपात, तो शक्तिपात की इस क्रिया को ही रेकी कहा जाता हैं। परंतु डाँ मिकाओ उशुई ने इसे ध्यान के द्वारा प्राप्त किया था। और एक खास बात की रेकी कुंडलिनी शक्ति का प्रयोग ही हैं। रेकी मैं ऊर्जा ब्रह्मांड से लेकर आगे सामने वाले पर प्रवाहित की जाती हैं, और उसका चैनल या यूं कहें कि माध्यम हम होते हैं बस यही रेकी हैं।।

प्राकर्तिक चिकित्सा का सर्टिफिकेट कोर्स


भारत मे पहली बार  प्राकर्तिक चिकित्सा का सर्टिफिकेट कोर्स

" कल्पांत रेकी साधना कोर्स की सफलता के बाद अब प्राकर्तिक चिकित्सा में 6 महीने का सर्टिफिकेट कोर्स Whatsapp ओर Hike पर "
हम आपको प्राकर्तिक चिकित्सा का 6 महीने का सर्टिफिकेट कोर्स करा रहे हैं। जिसमे आप स्वयं के डाक्टर बन जाते है। ओर सभी साध्य व असाध्य रोंगों का उपचार बिना दवा के प्राकर्तिक तरीके से कर पायेंगें। आपके लिये कुछ सवाल

1. क्या आपका घर मैडिकल स्टोर बनता जा रहा है ? (हाँ/नही)
2. क्या आपके दिन की शुरूआत दवाईयों से होती है ? (हाँ/नही)
3. क्या आप दवाईयाँ खाकर ठीक नही हो रहें है ? (हाँ/नही)
4. क्या आपके रोग बढ़तें जा रहें है ? (हाँ/नही)
5. क्या आप कम खाते हुए भी मोटे होते जा रहें है ? (हाँ/नही)
6. क्या आपका योग करते हुऐ भी बी पी सन्तुलित नही हो पा रहा है ? (हाँ/नही)
7. क्या आपका तनाव बढ़ता जा रहा है ? (हाँ/नही)
8. क्या तीनो समय खाना खाने के बाद भी आपको कमजोरी महसूस होती है ? (हाँ/नही)
9. क्या दिन-प्रतिदिन हास्पिटलों व बिमारियों की संख्या बढ़ रही है ? (हाँ/नही
10. क्या दैनिक जीवन में हम जहरीले रसायनों व खाद्वो का प्रयोग कर रहें है ? (हाँ/नही)
11. क्या आज प्रत्येक खाद्व पदार्थो मे मिलावटें बढ़ती जा रही है ? (हाँ/नही)
12. क्या हमारें शरीर को जरूरी पोषक तत्वो (विटामिन,खनिज तत्व,आदि) की पूर्ती नही हो पा रही है ? (हाँ/नही)
13. क्या आपकी रोग प्रतिरोध क्षमता कम होती जा रही है ? (हाँ/नही)
14. क्या आप कम उम्र मे भी बुड़े नजर आने लगें है ? (हाँ/नही)
15. क्या आपको लगता है कि जिन रोगो सें आप जूझ रहें हे उन्हें ठीक नही कर पायेंगें ? (हाँ/नही)
16. क्या आप वजन कम करने के प्रति गंभीर है ? (हाँ/नही)
17. क्या आपकी एक अच्छे स्वस्थ मे रूचि है ? (हाँ/नही)
18. क्या आप दवाईयो को जीवन मे कम करना चाहते है ? (हाँ/नही)
19. क्या आप क्रोध, भय, चिन्ता, तनाव से मुक्त व ऊर्जावान जीवन जीना चाहते है ? (हाँ/नही)
20. क्या आपको लगता है कि आप अपने रोगो को ठीक नही कर पायेगे ? (हाँ/नही)
21. क्या आप अपने स्वस्थ को केवल 1 घंण्टा देने के लिऐ तैयार है ? (हाँ/नही)

यदि आपके अधिकतर सवालो का जबाव (हाँ) है। तो आप हमारे प्राकर्तिक चिकित्सा का सर्टिफिकेट कोर्स करें। जिसमे आपको इन सब सवालो के जबाव व अधिक स्वस्थ रहने के तरीको के बारे में जान पायेंगें, ओर आप स्वयं स्वस्थ रहकर परिवार को स्वस्थ रख पायेगें।

आज एलोपैथी के उपचार से हम अपनी जीवनी शक्ति को खोते जा रहे है, ओर इतनी मेडिसन लेते हुए भी स्वस्थ नहीं हो पा रहे है, ओर रोंग ठीक होने की जगह बड़ते जा रहे है, दवाईयां कम होने की जगह निरंतर बढती जा रही है, दवाईयों व रोंगों से छुटकारा पाने के लिये प्राकर्तिक चिकित्सा का कोर्स बनाया गया है, हमारा शरीर पांच पंचतत्व व छठा चेतन तत्व (आत्म तत्व) से मिलकर बना है, ओर इन्ही तत्वों के द्वारा हम शरीर को पूर्ण रूप से स्वस्थ रख सकते है, हमारे शरीर में वो जीवनी शक्ति है जिसके द्वारा हम स्वयं रोंगों को ठीक कर सकते है, प्राकर्तिक चिकित्सा हमें वो जीवन शेली देती है जिससे हम रोंगों को तो ठीक करते ही है साथ ही साथ आने वाले रोंगों से भी बच जाते है, ओर एक बार कोर्स करके आप लाखो रूपये की सर्जरी व दवाईयों से बच जायेंगें।

इस कोर्स में प्राकर्तिक चिकित्सा का इतिहास क्या है, प्राकर्तिक चिकित्सा क्या है, प्राकर्तिक चिकित्सा के सिद्धांत क्या है, पंच तत्व क्या है, उनसे किस प्रकार चिकित्सा की जाती है, असाध्य रोंगों का उपचार बिना दवा के केसे करे, विभिन्न स्त्री, पुरुष, बच्चों के रोंग व सामान्य रोंगों के लक्षण कारण व उपचार, जल तत्व चिकित्सा, वायु तत्व चिकित्सा, आकाश तत्व चिकित्सा, मिटटी तत्व चिकित्सा, अग्नि तत्व चिकित्सा के बारे में विस्तार से जानेंगें।

यह पूरा कोर्स Whatsapp ओर Hike पर होगा। हम आपको नोट्स भेजेंगे और आपको निरंतर उनको पढ़ना होगा। 6 महीने बाद आपको एक एग्जाम पेपर पीडीऍफ़ में दिया जायेगा उसको हल करके मुझे कोरियर करना होगा, ओर आपको प्राकर्तिक चिकित्सा का सर्टिफिकेट आपके पते पर भेंज दिया जायेंगा। जो आत्मजन कोर्स करना चहाते है उन्है 5100 रू जमा करने होगें। रू जमा करते ही आपको एक फार्म पीडीएफ मे दिया जायेंगा। आपको उसे डाउनलोड कर भरकर तीन फोटो के साथ कोरियर करना होगा। ओर साथ ही आपका कोर्स शुरू कर दिया जायेगा।

कोर्स पूरा होने के बाद जो आत्मजन प्रयोगात्मक ट्रेनिग की इच्छा रखते है उन्हें एक दिवसीय ट्रेनिग हमारे केंद्र कल्पांत सेवाश्रम मुरादनगर गाजियाबाद पर 1000 रू जमा कर प्रदान की जाएगी।

अधिक जानकारी के लिए "9958502499" पर संपर्क करें

Thursday 11 August 2016

आत्मा और मन

आत्मा और मन

आत्मा क्या है और मन क्या है ?अपने सारे दिन की बातचीत में मनुष्य प्रतिदिन न जाने कितनी बार ‘ मैं ’ शब्द का प्रयोग करता है | परन्तु यह एक आश्चर्य की बात है कि प्रतिदिन ‘ मैं ’ और ‘ मेरा ’ शब्द का अनेकानेक बार प्रयोग करने पर भी मनुष्य यथार्थ रूप में यह नहीं जानता कि ‘ मैं ’ कहने वाले सत्ता का स्वरूप क्या है, अर्थात ‘ मैं’ शब्द जिस वस्तु का सूचक है, वह क्या है ? आज मनुष्य ने साइंस द्वारा बड़ी-बड़ी शक्तिशाली चीजें तो बना डाली है, उसने संसार की अनेक पहेलियों का उत्तर भी जान लिया है और वह अन्य अनेक जटिल समस्याओं का हल ढूंढ निकलने में खूब लगा हुआ है, परन्तु ‘ मैं ’ कहने वाला कौन है, इसके बारे में वह सत्यता को नहीं जानता अर्थात वह स्वयं को नहीं पहचानता | आज किसी मनुष्य से पूछा जाये कि- “आप कौन है ?” तो वह झट अपने शरीर का नाम बता देगा अथवा जो धंधा वह करता है वह उसका नाम बता देगा |वास्तव में ‘मैं’ शब्द शरीर से भिन्न चेतन सत्ता ‘आत्मा’ का सूचक है जैसा कि चित्र में दिखाया गया है | मनुष्य (जीवात्मा) आत्मा और शरीर को मिला कर बनता है | जैसे शरीर पाँच तत्वों (जल, वायु, अग्नि, आकाश, और पृथ्वी) से बना हुआ होता है वैसे ही आत्मा मन, बुद्धि और संस्कारमय होती है | आत्मा में ही विचार करने और निर्णय करने की शक्ति होती है तथा वह जैसा कर्म करती है उसी के अनुसार उसके संस्कार बनते है |आत्मा एक चेतन एवं अविनाशी ज्योति-बिन्दु है जो कि मानव देह में भृकुटी में निवास करती है | जैसे रात्रि को आकाश में जगमगाता हुआ तारा एक बिन्दु-सा दिखाई देता है, वैसे ही दिव्य-दृष्टि द्वारा आत्मा भी एक तारे की तरह ही दिखाई देती है | इसीलिए एक प्रसिद्ध पद में कहा गया है- “भृकुटी में चमकता है एक अजब तारा, गरीबां नूं साहिबा लगदा ए प्यारा |” आत्मा का वास भृकुटी में होने के कारण ही मनुष्य गहराई से सोचते समय यही हाथ लगता है | जब वह यश कहता है कि मेरे तो भाग्य खोटे है, तब भी वह यही हाथ लगता है | आत्मा का यहाँ वास होने के कारण ही भक्त-लोगों में यहाँ ही बिन्दी अथवा तिलक लगाने की प्रथा है | यहाँ आत्मा का सम्बन्ध मस्तिष्क से जुड़ा है और मस्तिष्क का सम्बन्ध सरे शरीर में फैले ज्ञान-तन्तुओं से है | आत्मा ही में पहले संकल्प उठता है और फिर मस्तिष्क तथा तन्तुओं द्वारा व्यक्त होता है | आत्मा ही शान्ति अथवा दुःख का अनुभव करती तथा निर्णय करती है और उसी में संस्कार रहते है | अत: मन और बुद्धि आत्म से अलग नहीं है | परन्तु आज आत्मा स्वयं को भूलकर देह- स्त्री, पुरुष, बूढ़ा जवान इत्यादि मान बैठी है | यह देह-अभिमान ही दुःख का कारण है |उपरोक्त रहस्य को मोटर के ड्राईवर के उदाहरण द्वारा भी स्पष्ट किया गया है | शरीर मोटर के समान है तथा आत्मा इसका ड्राईवर है, अर्थात जैसे ड्राईवर मोटर का नियंत्रण करता है, उसी प्रकार आत्मा शरीर का नियंत्रण करती है | आत्मा के बिना शरीर निष्प्राण है, जैसे ड्राईवर के बिना मोटर | अत: परमपिता परमात्मा कहते है कि अपने आपको पहचानने से ही मनुष्य इस शरीर रूपी मोटर  को चला सकता है और अपने लक्ष्य (गन्तव्य स्थान) पर पहुंच सकता है | अन्यथा जैसे कि ड्राईवर कार चलाने में निपुण न होने के कारण दुर्घटना (Accident) का शिकार बन जाता है और कार उसके यात्रियों को भी चोट लगती है, इसी प्रकार जिस मनुष्य को अपनी पहचान नहीं है वह स्वयं तो दुखी और अशान्त होता ही है, साथ में अपने सम्पर्क में आने वाले मित्र-सम्बन्धियों को भी दुखी व अशान्त बना देता है | अत: सच्चे सुख व सच्ची शान्ति के लिए स्वयं को जानना अति आवश्यक है |

यह जिस्म तो किराये का घर है...
एक दिन खाली करना पड़ेगा...||
सांसे हो जाएँगी जब हमारी पूरी यहाँ ...
रूह को तन से अलविदा कहना पड़ेगा...।।
वक्त नही है तो बच जायेगा गोली से भी
समय आने पर ठोकर से मरना पड़ेगा...||
मौत कोई रिश्वत लेती नही कभी...
सारी दौलत को छोंड़ के जाना पड़ेगा...||
ना डर यूँ धूल के जरा से एहसास से तू...
एक दिन सबको मिट्टी में मिलना पड़ेगा...||
सब याद करे दुनिया से जाने के बाद...
दूसरों के लिए भी थोडा जीना पड़ेगा...||
मत कर गुरुर किसी भी बात का ए दोस्त...
तेरा क्या है... क्या साथ लेके जाना पड़ेगा...||
इन हाथो से करोड़ो कमा ले भले तू यहाँ ...
खाली हाथ आया खाली हाथ जाना पड़ेगा...||
ना भर यूँ जेबें अपनी बेईमानी की दौलत से...
कफ़न को बगैर जेब के ही ओढ़ना पड़ेगा...||
यह ना सोच तेरे बगैर कुछ नहीं होगा यहाँ ....
रोज़ यहाँ किसी को "आना"तो किसी को "जाना"
पड़ेगा...||

Wednesday 10 August 2016

कृष्ण जन्म का रहस्य

कृष्ण जन्म का रहस्य


कृष्ण का जन्म होता है अँधेरी रात में, अमावस में। सभी का जन्म अँधेरी रात में होता है और अमावस में होता है। असल में जगत की कोई भी चीज उजाले में नहीं जन्मती, सब कुछ जन्म अँधेरे में ही होता है। एक बीज भी फूटता है तो जमीन के अँधेरे में जन्मता है। फूल खिलते हैं प्रकाश में, जन्म अँधेरे में होता है।

असल में जन्म की प्रक्रिया इतनी रहस्यपूर्ण है कि अँधेरे में ही हो सकती है। आपके भीतर भी जिन चीजों का जन्म होता है, वे सब गहरे अंधकार में, गहन अंधकार में होती है। एक कविता जन्मती है, तो मन के बहुत अचेतन अंधकार में जन्मती है। बहुत अनकांशस डार्कनेस में पैदा होती है। एक चित्र का जन्म होता है, तो मन की बहुत अतल गहराइयों में जहाँ कोई रोशनी नहीं पहुँचती जगत की, वहाँ होता है। समाधि का जन्म होता है, ध्यान का जन्म होता है, तो सब गहन अंधकार में। गहन अंधकार से अर्थ है, जहाँ बुद्धि का प्रकाश जरा भी नहीं पहुँचता। जहाँ सोच-समझ में कुछ भी नहीं आता, हाथ को हाथ नहीं सूझता है।

कृष्ण का जन्म जिस रात में हुआ, कहानी कहती है कि हाथ को हाथ नहीं सूझ रहा था, इतना गहन अंधकार था। लेकिन इसमें विशेषता खोजने की जरूरत नहीं है। यह जन्म की सामान्य प्रक्रिया है।

दूसरी बात कृष्ण के जन्म के साथ जुड़ी है- बंधन में जन्म होता है, कारागृह में। किसका जन्म है जो बंधन और कारागृह में नहीं होता है? हम सभी कारागृह में जन्मते हैं। हो सकता है कि मरते वक्त तक हम कारागृह से मुक्त हो जाएँ, जरूरी नहीं है हो सकता है कि हम मरें भी कारागृह में। जन्म एक बंधन में लाता है, सीमा में लाता है। शरीर में आना ही बड़े बंधन में आ जाना है, बड़े कारागृह में आ जाना है। जब भी कोई आत्मा जन्म लेती है तो कारागृह में ही जन्म लेती है।

लेकिन इस प्रतीक को ठीक से नहीं समझा गया। इस बहुत काव्यात्मक बात को ऐतिहासिक घटना समझकर बड़ी भूल हो गई। सभी जन्म कारागृह में होते हैं। सभी मृत्युएँ कारागृह में नहीं होती हैं। कुछ मृत्युएँ मुक्ति में होती है। कुछ अधिक कारागृह में होती हैं। जन्म तो बंधन में होगा, मरते क्षण तक अगर हम बंधन से छूट जाएँ, टूट जाएँ सारे कारागृह, तो जीवन की यात्रा सफल हो गई।

कृष्ण के जन्म के साथ एक और तीसरी बात जुड़ी है और वह यह है कि जन्म के साथ ही उन्हें मारे जाने की धमकी है। किसको नहीं है? जन्म के साथ ही मरने की घटना संभावी हो जाती है। जन्म के बाद - एक पल बाद भी मृत्यु घटित हो सकती है। जन्म के बाद प्रतिपल मृत्यु संभावी है। किसी भी क्षण मौत घट सकती है। मौत के लिए एक ही शर्त जरूरी है, वह जन्म है। और कोई शर्त जरूरी नहीं है। जन्म के बाद एक पल जीया हुआ बालक भी मरने के लिए उतना ही योग्य हो जाता है, जितना सत्तर साल जीया हुआ आदमी होता है। मरने के लिए और कोई योग्यता नहीं चाहिए, जन्म भर चाहिए।

लेकिन कृष्ण के जन्म के साथ एक चौथी बात भी जुड़ी है कि मरने की बहुत तरह की घटनाएँ आती हैं, लेकिन वे सबसे बचकर निकल जाते हैं। जो भी उन्हें मारने आता है, वही मर जाता है। कहें कि मौत ही उनके लिए मर जाती है। मौत सब उपाय करती है और बेकार हो जाती है। कृष्ण ऐसी जिंदगी हैं, जिस दरवाजे पर मौत बहुत रूपों में आती है और हारकर लौट जाती है।

वे सब रूपों की कथाएँ हमें पता हैं कि कितने रूपों में मौत घेरती है और हार जाती है। लेकिन कभी हमें खयाल नहीं आया कि इन कथाओं को हम गहरे में समझने की कोशिश करें। सत्य सिर्फ उन कथाओं में एक है, और वह यह है कि कृष्ण जीवन की तरफ रोज जीतते चले जाते हैं और मौत रोज हारती चली जाती है।

मौत की धमकी एक दिन समाप्त हो जाती है। जिन-जिन ने चाहा है, जिस-जिस ढंग से चाहा है कृष्ण मर जाएँ, वे-वे ढंग असफल हो जाते हैं और कृष्ण जीए ही चले जाते हैं। लेकिन ये बातें इतनी सीधी, जैसा मैं कह रहा हूँ, कही नहीं गई हैं। इतने सीधे कहने का पुराने आदमी के पास कोई उपाय नहीं था। इसे भी थोड़ा समझ लेना जरूरी है।

जितना पुरानी दुनिया में हम वापस लौटेंगे, उतना ही चिंतन का जो ढंग है, वह पिक्चोरियल होता है, चित्रात्मक होता है, शब्दात्मक नहीं होता। अभी भी रात आप सपना देखते हैं, कभी आपने खयाल किया कि सपनों में शब्दों का उपयोग करते हैं कि चित्रों का?

सपने में शब्दों का उपयोग नहीं होता, चित्रों का उपयोग होता है। क्योंकि सपने हमारे आदिम भाषा हैं, प्रिमिटिव लैंग्वेज हैं। सपने के मामले में हममें और आज से दस हजार साल पहले के आदमी में कोई फर्क नहीं पड़ा है। सपने अभी भी पुराने हैं, प्रिमिटिव हैं, अभी भी सपना आधुनिक नहीं हो पाया। अभी भी सपने तो वही हैं जो दस हजार साल, दस साल पुराने थे। गुहा-मानव ने एक गुफा में सोकर रात में जो सपने देखे होंगे, वही एयरकंडीशंड मकान में भी देखे जाते हैं। उससे कोई और फर्क नहीं पड़ा है। सपने की खूबी है कि उसकी सारी अभिव्यक्ति चित्रों में है।

जितना पुरानी दुनिया में हम लौटेंगे- और कृष्ण बहुत पुराने हैं, इन अर्थों में पुराने हैं कि आदमी जब चिंतन शुरू कर रहा है, आदमी जब सोच रहा है जगत और जीवन के बाबत, अभी जब शब्द नहीं बने हैं और जब प्रतीकों में और चित्रों में सारा का सारा कहा जाता है और समझा जाता है, तब कृष्ण के जीवन की घटनाएँ लिखी गई हैं। उन घटनाओं को डीकोड करना पड़ता है। उन घटनाओं को चित्रों से तोड़कर शब्दों में लाना पड़ता है। और कृष्ण शब्द को भी थोड़ा समझना जरूरी है।

कृष्ण शब्द का अर्थ होता है, केंद्र। कृष्ण शब्द का अर्थ होता है, जो आकृष्ट करे, जो आकर्षित करे; सेंटर ऑफ ग्रेविटेशन, कशिश का केंद्र। कृष्ण शब्द का अर्थ होता है जिस पर सारी चीजें खिंचती हों। जो केंद्रीय चुंबक का काम करे। प्रत्येक व्यक्ति का जन्म एक अर्थ में कृष्ण का जन्म है, क्योंकि हमारे भीतर जो आत्मा है, वह कशिश का केंद्र है। वह सेंटर ऑफ ग्रेविटेशन है जिस पर सब चीजें खिँचती हैं और आकृष्ट होती हैं।

शरीर खिँचकर उसके आसपास निर्मित होता है, परिवार खिँचकर उसके आसपास निर्मित होता है, समाज खिँचकर उसके आसपास निर्मित होता है, जगत खिँचकर उसके आसपास निर्मित होता है। वह जो हमारे भीतर कृष्ण का केंद्र है, आकर्षण का जो गहरा बिंदु है, उसके आसपास सब घटित होता है। तो जब भी कोई व्यक्ति जन्मता है, तो एक अर्थ में कृष्ण ही जन्मता है वह जो बिंदु है आत्मा का, आकर्षण का, वह जन्मता है, और उसके बाद सब चीजें उसके आसपास निर्मित होनी शुरू होती हैं। उस कृष्ण बिंदु के आसपास क्रिस्टलाइजेशन शुरू होता है और व्यक्तित्व निर्मित होता है। इसलिए कृष्ण का जन्म एक व्यक्ति विशेष का जन्म मात्र नहीं है, बल्कि व्यक्ति मात्र का जन्म है।

कृष्ण जैसा व्यक्ति जब हमें उपलब्ध हो गया तो हमने कृष्ण के व्यक्तित्व के साथ वह सब समाहित कर दिया है जो प्रत्येक आत्मा के जन्म के साथ समाहित है। महापुरुषों की जिंदगी कभी भी ऐतिहासिक नहीं हो पाती है, सदा काव्यात्मक हो जाती है। पीछे लौटकर निर्मित होती है।

पीछे लौटकर जब हम देखते हैं तो हर चीज प्रतीक हो जाती है और दूसरे अर्थ ले लेती है। जो अर्थ घटते हुए क्षण में कभी भी न रहे होंगे। और फिर कृष्ण जैसे व्यक्तियों की जिंदगी एक बार नहीं लिखी जाती, हर सदी बार-बार लिखती है।

हजारों लोग लिखते हैं। जब हजारों लोग लिखते हैं तो हजार व्याख्याएँ होती चली जाती हैं। फिर धीरे-धीरे कृष्ण की जिंदगी किसी व्यक्ति की जिंदगी नहीं रह जाती। कृष्ण एक संस्था हो जाते हैं, एक इंस्टीट्यूट हो जाते हैं। फिर वे समस्त जन्मों का सारभूत हो जाते हैं। फिर मनुष्य मात्र के जन्म की कथा उनके जन्म की कथा हो जाती है। इसलिए व्यक्तिवाची अर्थों में मैं कोई मूल्य नहीं मानता हूँ। कृष्ण जैसे व्यक्ति व्यक्ति रह ही नहीं जाते। वे हमारे मानस के, हमारे चित्त के, हमारे कलेक्टिव माइंड के प्रतीक हो जाते हैं। और हमारे चित्त ने जितने भी जन्म देखे हैं, वे सब उनमें समाहित हो जाते हैं।

साभार : 'कृष्ण स्मृति' पुस्तक से ओशो|

प्रार्थना-2



प्रार्थना-2

कल्प वृक्ष साधना में प्रार्थना का विशेष महत्व है। तो हम पहले प्रार्थना को समझें। प्रार्थना, दुआ, प्रेयर, आर्शीवाद जिस नाम से भी पुकारो। जिसने इसे जाना, उसने इसे अपने जीवन मे उतार लिया। अपने जीवन का साथी बना लिया। उसे जिंदगी में तमाम खुशियां मिल गई। वह सुख, समृद्धि, धन दौलत, प्यार दुलार, निरोंगता से पूर्ण हो गया। जिसने इसे जाना उसने योगियों की कंठी की तरह प्रार्थना को धारण कर लिया।

               जब से इस सृष्टि के रचना हुई है, तब से प्रार्थना का अस्तित्व अमर है, और जब तक सृष्टि रहेगी, तब तक ये सिलसिला यूं ही चलता रहेगा। जब जब प्रकृति का प्रकोप हुआ, तब तब मनुष्य ने प्रार्थना के लिए हाथ उठाऐ, और जब उनका कष्ट कम हुआ तो मनुष्य की आस्था बढ़ी, कि जरूर कोई शक्ति है जो सब कुछ नियंत्रित करती है। उसके ही आधीन यह संसार चल रहा है। हम चल रहे हैं। हमारा जीवन हमारी परिस्थितियां सब उसी शक्ति के अधीन है। यह शक्ति क्या है, साकार है या निराकार, इसको जानना है, और जिससे इस प्रार्थना की शक्ति को जान लिया, उसकी जिंदगी में बदलाव की व्यार बहने लगी। साइंस भी इस बात को मानता है, कि प्रार्थना से एक सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है ओर वह मनुष्य को बड़े-बड़े कष्टों से बाहर निकाल देती है।

           जब भी कोई इंसान प्रार्थना करता है, हाथ जोड़ता है, शीश नवाता है, तो उसका अहं का भाव खत्म हो जाता है। वह यह प्रार्थना कहीं भी मंदिर, मस्जिद, गरूद्वारे, गिरजाघर या फिर घर पर ही कर रहा हो, तो उसका चेतन मन कुछ क्षण के लिए शांत हो जाता है, और वह अवचेतन मन में पहुंचकर ध्यान लगाते हुए अपने दुखों से छुटकारा की कामना करता है, और उसका अवचेतन मन अपने अनुभव के आधार पर इसे अन्दरूनी तौर पर हालात से निबटने के लिए तैयार कर देता है। यदि उसका विश्वास व श्रद्वा अटल होती है, कोई शंका उसके मन में नहीं होती है, तो बड़ी से बड़ी मुश्किलें भी हल हो जाती है। उसकी आध्यात्मिक शक्ति जाग्रत होती है। और एक नया आत्म बल पैदा होता है। यह सकारात्मक भावना के पैदा होते ही हमारा अवचेतन मन उसकी परिस्थितियों को बदल देता है। परन्तु तभी जब विश्वास पक्का हो, इसमें समय लग सकता है, परंतु परिस्थितियां बदलेगी जरूर, समय आपकी श्रद्वा व विस्वास पर निर्भर करता है। आपकी साधना पर निर्भर करता है, कि आप अपनी बात को कितनी गहराई से अवचेतन तक पहुंचा पायें हैं।

                  कोई कहीं भी जाकर प्रार्थना करें, उसका फल उसके विश्वास के आधार पर मिलेगा, ना कि कर्म कांड या अनुष्ठान के अधार पर, या किसी विशेष स्थान के आधार पर मिलेगा। आज दुनिया में ऐसे हजारों लोग हैं जो चमत्कार करते हैं स्वयं के साथ भी और औरो के साथ भी, उन्हें लोग महाराज, ईस्वर, संत महात्मा कुछ भी नाम दें। वह यह सब प्रार्थना के बल पर ही कर पाते हैं। वह जानते हैं, उस ढंग को उस तरीके को, कि प्रार्थना कैसे की जाए, ओर उसे कैसे फलीभूत किया जाए। और जो दुसरों के लिए प्रार्थना करता है, उसका तो अहं पहले ही खत्म हो गया होता है, और फिर उसकी प्रार्थना व साधना का फल क्यों न मिलेगा।

               जब किसी के पास कोई सहारा न होता है, जब हर तरफ सें इंसान निराश हो जाता है, जिसका कोई उपचार नहीं हो पाता, जो आजीवन दुख मे बिता रहा हो, जो समय के साथ केवल हारता जाता है, उस इंसान को भी इस से रास्ता मिल जाता है। प्रार्थना का आश्रय इतना है कि श्रद्धा व विश्वास के साथ अपने आप को अवचेतन मन से जोड़कर केवल अपने विचारों को पोषित करो।
                  दुनिया में नास्तिक व आस्तिक दो प्रकार के लोग हैं। कुछ लोग श्रद्वा व विश्वास करते हैं कि शक्ति है, कुछ लोग केवल डर के कारण मानते हैं। तुम उस शक्ति को जानो जो परमात्मा या अवचेतन की शक्ति है। वह तुम्हारे मानने से या जानने से मिट नहीं जाएगी। तुम्हारे मानने से अगर नहीं होगी, तो हो नहीं जायेगी, और जो शक्ति नहीं है वह आपके मानने से पैदा नहीं हो जाएगी, जो है वह सदा रहेगी, तुम जानो मानो या न मानो। तुम डरते हो इसलिए प्रार्थना करते हो या श्रद्वा व विस्वास है इसलिए, निर्भर इस बात पर करता है प्रार्थना का फल। अगर तुमने डर से माना कि कोई है तो कभी सफल नहीं हो पाओगे। अगर सत्य, श्रद्वा व  विश्वास से जाना तो जान लोगें, तुम सब कुछ प्राप्त कर लोगे, जो चाहोगे पा लोगे।

                 इसलिऐ डर को दूर करो, डर से नहीं प्रेम से श्रद्वा से जानो कि वह शक्ति क्या है, कैसे इसका प्रयोग कर सकते हैं। हर जगह प्रेम के फूलों की वर्षा करो, और तुम जानोगे कि प्रेम करते-करते परमात्मा तुम्हारें पास खड़ा है। अपने बच्चों को, पत्नी को, परिवार को, प्रिय जनों को, मनुष्य को, पशुओं को, पक्षियों को, पौधों को, पहाड़ों को, जहां तक तुम पहुँच सकते हो, वहां तक प्रेम रूपी प्रार्थना के पुष्प खिला दो। जैसे जैसे पुष्प खिलेंगे, परमात्मा की झलक आने लगेंगी, ओर जिस दिन तुम्हारा पूर्ण रूपेण अहं खत्म हो गया तुम प्रेममय हो गये, प्रार्थना को जान गये उस दिन तुम और परमात्मा एक हो जाओगें और चमत्कार करना तुम्हारे लिए खेल बन जाए


कल्पांत कल्पवृक्ष साधना पुस्तक से (स्वामी जगतेश्वर आनंद जी)
                              मूल्य मात्र = 250/-






प्रार्थना

प्रार्थना
मुझे कैसे प्रार्थना करनी चाहिए? मैं प्रार्थना करने में जो कुछ अनुभव करता है, मैं नहीं जानता कि अपने इस प्रेम की मैं किस तरह ठीक से अभिव्यक्त करूं?

प्रार्थना कोई विधि नहीं है, वह कोई संस्कार नहीं है, और न वह कोई औपचारिकता है। यह हृदय का सहज स्वाभाविक उमड़ता उद्रेक है, इसलिए यह पूछो ही मत—कैसे? क्योंकि यहां कैसे जैसा कुछ है ही नहीं, और ' न कैसे जैसा ' कुछ हो भी सकता है।

जिस क्षण जो कुछ घटता है, वही ठीक है। यदि आंसू उमड़ते हैं तो अच्छा है। यदि तुम कोई गीत गाने लगते हो तो यह भी ठीक है। यदि तुम नाचने लगते हो, तो भी ठीक है। यदि अंदर से कुछ भी नहीं आ रहा है और तुम बस शांत खड़े रहते हो, तो यह भी ठीक है। क्योंकि प्रार्थना, कोई अभिव्यक्ति नहीं है, वह किसी खोल या आवरण में नहीं है, वह उस खोल या आवरण में बंद उस सारभूत तत्व में है।

कभी मौन ही प्रार्थनापूर्ण होता है, तो कभी गीत गाना प्रार्थना बन जाता है। यह सभी कुछ तुम पर और तुम्हारे हृदय पर निर्भर करता है। इसलिए यदि मैं तुमसे गीत गाने के लिए कहता हूं और तुम गीत इसलिए गाते हो क्योंकि ऐसा करने के लिए मैंने तुमसे कहा था, तब वह प्रार्थना शुरू से ही नकली और झूठी है। अपने हृदय की सुनो, उस क्षण को महसूस करो और उसे होने दो। और फिर जो कुछ भी होता है, वह ठीक ही होता है।

तुम्हारे साथ कभी कुछ भी नहीं घटेगा, लेकिन वह तो निरंतर घट ही रहा है, तुम उसे घटने की अनुमति तो दो, उस पर तुम अपनी इच्छा मत लादो। जब तुम पूछते हो—कैसे? तो तुम अपनी चाह थोपने की कोशिश कर रहे हो, तुम कोई योजना बनाने की कोशिश कर रहे हो। इसी तरह तुम प्रार्थना से चूक जाते हो। इसी कारण सभी धर्मस्थल और धर्म, संस्कार और कर्मकांड बन कर रह गए हैं। उनकी एक तय की गई निश्चित प्रार्थना है, उसका एक निश्चित रूप है, एक अधिकृत और स्वीकृत किया गया अनूदित वर्णन है। लेकिन कोई भी व्यक्ति कैसे प्रार्थना की शब्दावली को स्वीकृति प्रदान कर सकता है? कोई भी व्यक्ति कैसे उसका अधिकृत वर्णन तैयार कर तुम्हें दे सकता है? प्रार्थना तो तुम्हारे अंदर से उठती और उमगती है, और प्रत्येक क्षण में उसकी अपनी प्रार्थना होती है, और प्रत्येक चित्तवृत्ति में उसकी अपनी निजी प्रार्थना होती है। यह कोई भी नहीं जानता कि तुम्हारे आतरिक संसार में कल सुबह क्या घटने जा रहा है? उसे कैसे निश्चित और तय किया जा सकता है?

एक पहले से तैयार की गई प्रार्थना झूठी और नकली प्रार्थना है; यह तो निश्चित रूप से कहा जा सकता है। एक निर्धारित विधि से तैयार संस्कारित प्रार्थना, प्रार्थना ही नहीं है उसके बाबत यह पूरी तौर से निश्चित रूप से कहा जा सकता है। एक असंस्कारित, सहज स्वाभाविक भाव भरी मुद्रा और कुछ भी नहीं, एक प्रार्थना ही है।

कभी तुम बहुत उदासी का अनुभव कर सकते हो, क्योंकि उदासी परमात्मा से ही सम्बंधित है। उदासी भी दिव्य होती है। यहां हमेशा प्रसन्न रहना भी कोई जरूरी नहीं है। तब यह उदासी ही तुम्हारी प्रार्थना है। तब तुम अपने हृदय को रोने और बिलखने दो, और आंखों को आंसू बरसाने दो। तब इस उदासी को ही परमात्मा की अर्पित कर दो। वहां तुम्हारे हृदय में जो कुछ भी हो, उसे ही उन दिव्य चरणों में अर्पित कर दो—वह प्रसन्नता हो अथवा उदासी, और कभी—कभी वह क्रोध या आक्रोश भी हो सकता है।

जब कभी कोई परमात्मा से नाराज भी हो सकता है। यदि तुम परमात्मा से नाराज नहीं हो सकते, तो तुमने प्रेम को जाना ही नहीं। जब कभी कोई वास्तव में एक गहरे उन्माद में हो सकता है। तब अपने क्रोध को ही अपनी प्रार्थना बन जाने दो। परमात्मा से लड़ो—वह तुम्हारा है और तुम उसके हो, और प्रेम कोई औपचारिकता नहीं जानता। प्रेम में सभी तरह के संघर्ष बने रह सकते हैं। यदि उसमें लड़ाई और संघर्ष का अस्तित्व न हो, तब वह प्रेम है ही नहीं। इसलिए जब कभी तुम्हें प्रार्थना करने जैसा कुछ भी अनुभव न हो, तो तुम उसे ही अपनी प्रार्थना बना लो। तुम परमात्मा से कहो—’‘ जरा ठहरो! देखो, मेरा मूड ठीक नहीं है, और तुम जिस तरह से यह सब कुछ कर रहे हो, यह कृत्य तुम्हारी प्रार्थना करने योग्य नहीं है।’’

लेकिन तुम इसे अपने हृदय का सहज स्वाभाविक भावोद्वेग बनने दो
परमात्मा के साथ कभी भी अप्रामाणिक बनकर मत रहो, क्योंकि यह तरीका उसके साथ अस्तित्व में बने रहने का नहीं है। यदि तुम परमात्मा के साथ ईमानदार नहीं हो—यदि गहरे में तो तुम शिकायत कर रहे हो और ऊपर ही ऊपर प्रार्थना कर रहे हो? तब परमात्मा तुम्हारी शिकायत की ओर ही देखेगा, प्रार्थना की ओर नहीं। तुम झूठे बन जाओगे। वह सीधे तुम्हारे हृदय में देख सकता है। तुम किसे धोखा देने अभी यह क्षण समय का भाग नहीं है?

की कोशिश कर रहे हो? तुम्हारे चेहरेकी मुस्कान परमात्मा को धोखा नहीं दे सकती, तुम्हारा वास्तविक सत्य वह जान ही लेगा। केवल वही तुम्हारे सत्य को जान सकता है, उसके सामने झूठ ठहरता ही नहीं। इसलिए वहां सत्य को ही बने रहने दो। तुम उसे केवल अपना सत्य ही भेंट करो और कहो— आज मैं तुमसे नाराज हूं तुम्हारे इस संसार से नाराज हूं तुम्हारे द्वारा दिए इस जीवन से नाराज हूं। मैं तुमसे घृणा करता हूं। और मैं तुम्हारी प्रार्थना भी नहीं कर सकता, इसलिए तुम्हें आज मेरी प्रार्थना के बिना ही रहना होगा। मैंने अब तक बहुत सहा है, अब तुम सहो।

उससे इसी तरह बात करो जैसे कोई अपने प्रेमी या मित्र या मां के साथ बातचीत करता है। उससे ऐसे बात करो जैसे कोई छोटे बच्चे के साथ बात सकता है। मैं एक परिवार के साथ ठहरा हुआ था, और वहां मां ने अपने छोटे बच्चे को प्रार्थना करने का आदेश दिया। वह बच्चा अभी सोने के लिए बिस्तरे पर जाने के लिए तैयार नहीं था और वह कुछ देर और मेरे पास रहना चाहता था। उसकी प्रार्थना करने में भी कोई दिलचस्पी नहीं थी। लेकिन वह परिवार बहुत अधिक अनुशासन प्रेमी था इसलिए उन्होंने उससे कहा—’‘ अब नौ बज गये हैं। तुम सोने के लिए जाओ, और देखो, प्रार्थना करना भूल मत जाना।’’

मैं देख सकता था कि वह बहुत नाराज था। वह अपने कमरे में गया। मैंने केवल यह सुनने के लिए ही, कि वह कैसी प्रार्थना करने जा रहा है, उसका चुपके से पीछा गया। अंधेरे में मैंने उसे यह कहते हुए सुना—’‘ हे परमात्मा तू बुरे लोगों को अच्छा बना और अच्छे लोगों को बहुत अच्छा ''। वह जानता था कि उसके माता और पिता अच्छे तो हैं लेकिन वे बहुत अधिक अच्छे नहीं हैं।

मैंने एक अन्य दूसरे बच्चे के बारे में भी सुना है। मैं एक परिवार के साथ एक अतिथि गृह में ठहरा हुआ था। पहली रात बच्चे ने प्रार्थना की। वह बच्चा सोते हुए हमेशा मद्धिम प्रकाश जलाये रखता था, लेकिन उस रात बिजली चले जाने से गहन अंधकार था। उसके प्रार्थना प्रारम्भ करते ही बिजली चली गई थी। वह बिस्तरे से उठकर अपनी मां से बोला—’‘ अब मुझे फिर से और अधिक सावधानी से प्रार्थना करनी होगी क्योंकि रात और अधिक अंधेरी होती जा रही है।’’ पहले तो उसने कामचलाऊ औपचारिक प्रार्थना की थी, लेकिन अब चूंकि रात अंधरी हो गई थी और वहां कोई प्रकाश भी न था, इसलिए वह अधिक भयभीत था। उसने कहा— '' मुझे अब फिर से प्रार्थना करनी होगी। मुझे फिर बिस्तरे से उठकर कहीं अधिक सावधानी से प्रार्थना करनी होगी क्योंकि अब यहां कहीं अधिक खतरा है।’’

एक बच्चे बनकर ही बच्चों की प्रार्थनाएं सुनो।
सभी धर्म कहते हैं कि परमात्मा परमपिता है। वास्तव में जोर इस बात पर होना चाहिए कि मनुष्य एक बच्चे की भांति है। जब हम परमात्मा को परमपिता कहते हैं तो उसका असली अर्थ यही है। लेकिन हम लोग यह भूल गए है— परमात्मा परमपिता है, लेकिन हम लोग उसके बच्चे नहीं हैं। इसे भूल जाओ कि वह तुम्हारा पिता है अथवा नहीं, तुम बस एक छोटे बच्चे की भांति हो जाओ—सहज, स्वाभाविक सच्चे और प्रामाणिक। मुझसे या किसी दूसरे से भी यह पूछो ही मत कि प्रार्थना कैसे की जाये? क्षण को ही यह तय करने दो, यह क्षण ही निर्णायक होगा और उस क्षण का सत्य ही तुम्हारी प्रार्थना होनी चाहिए।
यही मेरा उत्तर है उस क्षण का सत्य, वह चाहे जो भी हो, जैसा भी हो, बिना शर्त तुम्हारी प्रार्थना बन जाना चाहिए। और एक बार उस क्षण का सत्य तुम्हारी सम्पत्ति बन जाता है, तुम विकसित होना शुरू हो जाओगे और तुम तभी प्रार्थना के अतुलित सौंदर्य को जानोगे। तुम पथ में प्रविष्ट हो चुके हो। लेकिन यदि तुम केवल एक ही प्रार्थना एक ही विधि से दोहराते चले जाओगे तब तुम चूक जाओगे। तुम पथ में कभी प्रविष्ट ही न हो सकोगे, और तुम केवल उससे बाहर ही बने रहोगे।


शून्य

शून्य
ध्यान शून्य लाता है। अगर तुमने जल्दबाजी की तो शून्य को भरने की तृष्णा पैदा होगी। अगर जल्दबाजी न की और तुम शून्य के साथ रहने को राजी हो गए, तुमने उसे स्वीकार कर लिया, तो तुम पाओगे धीरे-धीरे शून्य अपने आप भर दिया गया। क्योंकि प्रकृति शून्य को बरदाश्त नहीं करती; शून्य तुम करो, भर देती है प्रकृति। न परमात्मा शून्य को बरदाश्त करता है। तुम शून्य पैदा करो, परमात्मा भर देता है।

 शून्य भर चाहिए, पूर्ण तो उतर आता है। जैसे कहीं गङ्ढा हो, वर्षा हो, तो सारा पानी चारों तरफ से दौड़ कर गङ्ढे में भर जाता है। ऐसे ही तुम जब शून्य होते हो, परमात्मा चारों तरफ से तुम्हारी तरफ दौड़ने लगता है। तुमने गङ्ढा बना दिया, अब भरना उसे है। आधा तुम करते हो, आधा परमात्मा करता है। और तुम्हारा करना कुछ खास नहीं, असली करना तो उसी का है। तुम्हारा करना इतना ही है कि तुम खाली होने को राजी हो जाओ। इसलिए सारे बुद्धपुरुष–भरने की तृष्णा से बचो, बटोरने की तृष्णा से बचो–इसका इतना आग्रह करते हैं। क्योंकि अगर तुमने स्वयं ही भर लिया, तो तुम परमात्मा को भरने का मौका ही नहीं देते हो।
💦ओशो 💦

एक ध्यान प्रयोग

एक ध्यान प्रयोग
आराम से सुखासन में बैठ जाएँ | रीढ़ की हड्डी सीधी तनी हुई नहीं | आँखें बंद कर लें |
कल्पना करें कि आप हिमालय में हैं | चारो तरफ बर्फ के पर्वत | कल कल करती हुई गंगा बह रही है | ऐसा मानस पटल पर कल्पना में देखें | ( दो मिनट तक )चारो तरफ पर्वतों से घिरी हुई बीच में घाटियों के मध्य गंगा बह रही है कल्पना करें | ( दो मिनट तक ) गंगा को थोडा नजदीक से देखें | ( दो मिनट तक )
अपने आप को बहती हुई गंगा के बीच उपर में ( करीब दस फुट उपर ) शून्य में आसन लगाए हुए देखें | ( दो मिनट तक ) गंगा के उपर जहाँ आप आसन लगा कर बैठे हुए हैं वहां से चारो तरफ पर्वतों की सुन्दरता को निहारें कल्पना में ( पांच मिनट तक ) इन सबके उपरान्त मन हीं मन ॐ का मानसिक जाप करें |
जब तक ईच्छा हो इस ध्यान में बने रहें | ध्यान का एक उदेश्य आनन्द की प्राप्ति भी है इस ध्यान को करने के बाद आप तरो ताज़ा मह्शूश करेंगे और मन में आनन्द भी बना रहेगा |

देह शून्यता की साधना

देह शून्यता की साधना

सारे शरीर को शिथिल छोड़कर, प्रत्येक चक्र पर सुझाव देकर शरीर को शिथिल छोड़कर, अंधकार करके कमरे में, ध्यान में प्रवेश करें। जब शरीर शिथिल हो जाए, जब श्वास शिथिल हो जाए और जब चित्त शांत हो जाए, तो एक भावना करें कि आप मर गए हैं, आपकी मृत्यु हो गयी है। और स्मरण करें अपने भीतर कि अगर मैं मर गया हूं, तो मेरे कौन से प्रियजन मेरे आस-पास इकट्ठे हो जाएंगे! उनके चित्रों को अपने आस-पास उठते हुए देखें। वे क्या करेंगे, उनमें कौन रोएगा, कौन चिल्लाएगा, कौन दुखी होगा, उन सबको बहुत स्पष्टता से देखें। वे सब आपको दिखायी पड़ने लगेंगे।

फिर देखें कि मुहल्ले-पड़ोस के और सारे प्रियजन इकट्ठे हो गए और उन्होंने लाश को आपकी उठाकर अब अर्थी पर बांध दिया है। उसे भी देखें। और देखें कि अर्थी भी चली और लोग उसे लेकर चले। और उसे मरघट तक पहुंच जाने दें। और उन्हें उसे चिता पर भी रखने दें।

यह सब देखें। यह पूरा इमेजिनेशन है, यह पूरी कल्पना है। इस पूरी कल्पना को अगर थोड़े दिन प्रयोग करें, तो बहुत स्पष्ट देखेंगे। और फिर देखें, उन्होंने चिता पर आपकी लाश को भी रख दिया। और लपटें उठी हैं और आपकी लाश विलीन हो गयी।

जब यह कल्पना इस जगह पहुंचे कि लाश विलीन हो गयी और धुआं उड़ गया आकाश में और लपटें हवाएं हो गयी हैं और राख पड़ी है, तब एकदम से सजग होकर अपने भीतर देखें कि क्या हो रहा है! उस वक्त आप अचानक पाएंगे, आप देह नहीं हैं। उस वक्त तादात्म्य एकदम टूटा हुआ हो जाएगा।

इस प्रयोग को अनेक बार करने पर जब आप उठ आएंगे प्रयोग करने के बाद भी, चलेंगे, बात करेंगे, और आपको पता लगेगा, आप देह नहीं हैं। इस अवस्था को हमने विदेह कहा है–इस अवस्था को। इस प्रक्रिया के माध्यम से जो जानता है अपने को, वह विदेह हो जाता है।

अगर यह चौबीस घंटे सध जाए और आप चलें, उठें-बैठें, बात करें और आपको स्मरण हो कि आप देह नहीं हैं, तो देह शून्य हो गयी। तो यह देह शून्य हो जाना अदभुत है। यह अदभुत है, इससे अदभुत कोई घटना नहीं है। देह का तादात्म्य टूट जाना सबसे अदभुत है।

देह-शुद्धि, विचार-शुद्धि और भाव-शुद्धि के बाद जब देह की शून्यता का यह प्रयोग करेंगे, तो यह निश्चित सफल हो जाता है। और तब जीवन में बड़े अदभुत परिवर्तन होने शुरू हो जाते हैं। आपकी सारी भूलें और सारे पाप देह से बंधे हुए हैं। आपने जीवन में एक भी भूल और एक भी पाप नहीं किया होगा, जो देह से बंधा हुआ न हो। और अगर आपको स्मरण हो जाए कि आप देह नहीं हैं, तो जीवन से कोई भी विकृति के उठने की संभावना शून्य हो जाएगी।

तब अगर कोई आपको तलवार भोंक दे, तो आप देखेंगे, उसने देह में तलवार भोंक दी और आपको कुछ भी पता नहीं चलेगा कि आपको कुछ हुआ। आप अस्पर्शित रह जाएंगे। उस वक्त आप कमल के पत्ते की तरह पानी में होंगे। उस वक्त, जब देह-शून्यता का बोध होगा, तब आप स्थितप्रज्ञ की भांति जीवन में जीएंगे। तब बाहर के कोई आवर्त और बाहर के कोई तूफान और आंधियां आपको नहीं छू सकेंगी, क्योंकि वे केवल देह को छूती हैं। उनके संघात केवल देह तक होते हैं, उनकी चोटें केवल देह तक पड़ती हैं। लेकिन भूल से हम समझ लेते हैं कि वे हम पर पड़ीं, इसलिए हम दुखी और पीड़ित और सुखी और सब होते हैं।
यह आंतरिक साधना का, केंद्रीय साधना का पहला चरण है। हम देह-शून्यता को साधें। यह सध जाना कठिन नहीं है। जो प्रयास करते हैं, वे निश्चित सफल हो जाते हैं।
ध्यान सूत्र ओशो